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पावन भारत टाइम्स संवाद)
- विश्व की पाप नाशिनी नगरी है 'अयोध्या' : महंत नृत्यगोपाल
- भारत के बेटे-बेटियों में राम और सीता के अंश विद्यमान : श्रीमती मृदुला सिन्हा
- वर्तमान पीढ़ी के सबक के लिये गुलामी के प्रतीकों को हराना होगा : चम्पत राय
- विदेशियों के इतिहास लेखन के कारण हम अपनी नजरों में गिरे: नरेन्द्र कोहली
लोक में राम विषय पर तीन दिवसीय कान्क्लेव का हुआ उद्घाटन
अयोध्या,04 मार्च (हि. स.)। संस्कार भारती, डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, ललित कला अकादमी, नई दिल्ली एवं अयोध्या शोध संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में 'लोक में राम' विषय पर चार दिवसीय कान्क्लेव का बुधवार को उद्घाटन किया गया।
विश्व की पाप नाशिनी नगरी है 'अयोध्या' - महंत नृत्यगोपाल दास
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अध्यक्ष श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास ने कहा कि भगवान राम को समझने के साथ अयोध्या को समझना चाहिए। अयोध्या विश्व की सबसे पहली प्रधान नगरी है। मनु ने अयोध्या को बसाया, उत्तर की दिशा में सरयू बह रही है। कहा कि यह अयोध्या ही विश्व की पाप नाशिनी नगरी है।
भारत के बेटे-बेटियों में राम और सीता के अंश विद्यमान - श्रीमती मृदुला सिन्हा
गोवा की पूर्व राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा ने कहा कि राम के बारे में विस्तार से जानना आवश्यक है। राम की कहानियां जो दादा-दादी से सुनी गई है वे 'लोक के राम' हैं। राम का कद इतना ऊंचा है कि उन्हें भारत की सीमा में नहीं बांधा जाता है।
कहा कि विश्व का जनमानस राम को अंगीकृत किया है। बालक के जन्म पर भी राम का गायन किया जाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि देश के कण-कण में राम हैं। 'लोक' केवल भारत ही नहीं है यह एक विस्तृत आयाम है 'लोक में राम'।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में दादी, नानी का स्थान रिक्त हो रहा है। फिर कहानियां कौन सुनायेगा। भारत के बेटे, बेटियों में राम और सीता के अंश विद्यमान हैं। हमारे राम कहीं भी किसी से कम नहीं है।
कालखण्ड व भारतीय संस्कृति की परम्परा एवं मूल में हैं 'श्रीराम' - डा.नीलकंठ
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पर्यटन, धर्मार्थ व संस्कृति राज्य मंत्री नीलकंठ तिवारी ने कहा कि मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम की परिकल्पना अयोध्या में परिलक्षित है। राम राज्य की रूपरेखा वर्तमान संदर्भ में सबसे अधिक प्रासंगिक शासन प्रणाली के लिए जानी जाती है। ललित कला के सर्वाधिक प्रणेता श्रीकृष्ण रहे। इतने लम्बे कालखण्ड तक भारतीय संस्कृति जीवित रही। उसका मूलाधार जिस परम्परा एवं मूल में देखेंगे तो राम मिलेंगे।
लोक कलाओं और लेखन से हमारे बीच आज भी विद्यमान हैं 'श्रीराम' - चम्पत राय
श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महामंत्री चम्पत राय ने कहा कि 1528 के बाद से रामजन्मभूमि का सघर्ष अनवरत चला। लोक कलाओं और लेखन से आज राम हमारे बीच विद्यमान है। महत्व मंदिर का है कि एक विदेशी ने हमारे आराध्य का मंदिर तोड़ दिया। गांधी की पीड़ा भी यही रही।
वर्तमान पीढ़ी के सबक के लिये गुलामी के प्रतीकों को हराना होगा : चम्पत राय
उन्होंने कहा कि पांच सौ वर्षों से लगातार सघर्ष के बाद हमारा सम्मान वापस मिला। देश की मिट्टी से प्यार करना होगा। गुलामी के प्रतीकों को हराना होगा इससे हमारी पीढ़ी एक सबक लेगी।
वरिष्ठ साहित्यकार एवं चिन्तक नरेन्द्र कोहली ने कहा कि श्रीराम की परम्पराओं पर कई प्रसंग आते हैं, इसमें तुलसी दास एवं वाल्मीकि रामायण में वर्णन मिलता है। राम प्रत्येक काल में प्रासंगिक रहे हैं। तुलसी के राम एवं अन्य विद्वानों के राम में कई विभिन्नताएं हैं सारा संकट वही आता है। जब हम राम को इतिहास मान लेते हैं।
विदेशियों के इतिहास लेखन के कारण हम अपनी नजरों में गिरे: नरेन्द्र कोहली
कहा कि विवेकानन्द ने कहा था कि भारतीयों, हिन्दुओं ने अपना इतिहास कभी नहीं लिखा। विदेशियों ने भारत का इतिहास लिखा ताकि हम अपनी नजरों में गिर जायें। उन्होंने कहा कि अब आपकों अपना इतिहास स्वयं लिखें। अपने महापुरूषों तक जाओ और उनके मूल ग्रन्थों को अवश्य पढ़ो। अपने आपको खोजना भगवान राम को खोजना है।
अवध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय परिसर में श्रीराम शोध-पीठ में राम के विभिन्न चित्रों का चित्रण राष्ट्रीय ललित कला के कलाकारों द्वारा किया जा रहा है। प्रभु श्रीराम मूल स्वरूप में साकार हो, सभी संभावनाओं को साकार करना होगा।
सबसे पहले कार्यक्रम का उद्घाटन गोवा की पूर्व राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा, अध्यक्ष श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास, संस्कृतिक एवं पर्यटन, धर्मार्थ व संस्कृति राज्य मंत्री नीलकंठ तिवारी, संरक्षक संस्कार भारती के पद्मश्री बाबा योगेन्द्र, ट्रस्ट महामंत्री चम्पत राय, रिसीवर एवं सदस्य राजा अयोध्या विमलेन्द्र मोहन प्रताप मिश्र, सदस्य महंत दिनेन्द्रदास, सदस्य अनिल मिश्र, वरिष्ठ साहित्यकार एवं चिन्तक नरेन्द्र कोहली, कार्यक्रम की संयोजिका लोक गायिका श्रीमती मालनी अवस्थी एवं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित ने मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया।
इसके बाद पूर्व कर्नाटक के कलाकारों द्वारा यक्षगान की प्रस्तुति एवं राजस्थान के मेवाती के युसूफ खान के समूह द्वारा राम के भजन की लोक संस्कृति के तहत वाद्ययत्रों की प्रस्तुति दी।
अतिथियों का स्वागत कार्यक्रम की संयोजिका श्रीमती मालनी अवस्थी एवं अवध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित ने पुष्पगुच्छ एवं अंगवस्त्र भेटकर किया गया।
इस अवसर पर विभिन्न प्रांतों से आये प्रतिनिधिगण एवं विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो. एसएन शुक्ल, परीक्षा नियंत्रक उमानाथ, उपकुलसचिव विनय सिंह, मुख्य नियंता प्रो. आरएन राय, प्रो. अशोक शुक्ल, कार्यपरिषद सदस्य ओम प्रकाश सिंह समेत बड़ी संख्या में शिक्षक, कर्मचारी एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।