आत्मनिर्भर बनने की राह के इंतजार में बुंदेलखंड

आत्मनिर्भर बनने की राह के इंतजार में बुंदेलखंड



(इं प्रवीण पाण्डेय)
         


 देश का एक ऐसा हिस्सा जहाँ का प्रत्येक गाँव भूख और आत्महत्याओं की दुःख भरी कहानियों से भरा पड़ा है । बुन्देलखण्ड के विकास पर पानी की कमी , भूमि अनुपजाऊ और जनप्रतिनिधियों की असक्रियता तीनों एक साथ प्रहार करते आये हैं । 
       ऐसी ही दशकों पुरानी एक कहानी बुन्देलखण्ड की इकलौती ग्लास फैक्ट्री की है जिसका शिलान्यास दशकों पहले कांग्रेस की सरकार में हुआ था लेकिन आज तक ये चालू नही हो पाई । बुन्देलखण्ड के हजारों मजदूरों का नुकसान हुआ । 
             "बरगढ़ की ग्लास फैक्ट्री का चालू न होना बुंदेलखंड का दुर्भाग्य है। यदि फैक्ट्री समय से चालू हो गई होती तो यहां के युवक रोजगारपरक होते और यहां से पलायन न होता।"
     बुंदेलखंड से बेरोजगारी मिटाने  हेतु सन 1987 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कर कमलों द्वारा  ,चित्रकूट जिले के बरगढ़ में ग्लास फैक्ट्री का शिलान्यास हुआ था। लेकिन यह ग्लास फैक्ट्री शुरू होने से पहले ही कबाड़ में तब्दील हो चुकी है। राज्य मिनरल्स डेवलपमेंट कार्पोरेशन के अंतर्गत आने वाली ये फैक्ट्री चित्रकूट जिले के बरगढ़ क्षेत्र में आती है |
      उम्मीद थी कि 1990 तक यह फैक्ट्री काम करनी शुरू कर देगी और हजारों बेरोजगार अपनी दो वक्त की रोटी कमा सकेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
        सन 1988 में कुछ प्राइवेट सेक्टर के उद्योगपतियों के सहयोग से प्रारम्भ किया गया था । इस फैक्ट्री के निर्माण में प्राइवेट सेक्टर के कई लोगों ने अपना अपना साझा पूंजी निवेश कर रखा था ।
            फैक्ट्री के निर्माण में प्रमुख शेयर होल्डर्स में से UPSMDC की 26% पूंजी , सऊदी अरब के शेख बंधुओ की 12% , सी.एल. वर्मा की 9% पूंजी ,लन्दन के एक उद्योगपति विल क्लिंटन ब्रदर्स की 4% पूंजी , आदित्य बिड़ला की 15% पूंजी , यूपी गवर्नमेंट की 33% पूंजी संयुक्त रूप से लगाने का एग्रीमेंट किया गया था ।
           फैक्ट्री में तेजी से निर्माण कार्य कराते हुए सन 1991 तक 50% निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया था । लेकिन शेयर होल्डर्स की आपसी खींचतान के कारण फैक्ट्री के निर्माण में धन की कमी आने लगी और सन 1991 से ही निर्माण कार्य करा रहे ठेकेदारों का पैसा भुगतान बन्द होने लगा था । उन लोगो ने धन की कमी के कारण फैक्ट्री का अगला निर्माण कार्य कराना बंद करवा दिया । लगभग 50 हेक्टेयर में निर्माणाधीन बरगढ़ ग्लास फैक्ट्री का निर्माण कार्य धनाभाव में बंद हो गया ।


 


 


 



        बरगढ़ स्टेशन से फैक्ट्री तक रेल लाइन बिछाने का काम भी पूरा करा लिया गया था । 
                      लन्दन के कारोबारी विल क्लिंटन ब्रदर्स ने लन्दन में सन 1991 के सितम्बर अक्टूबर महीने में फ्लोट ग्लास बनाने की लगभग 2000 करोड़ रूपये कीमत की बडी बड़ी मशीने समुद्र के रास्ते भारत भिजवाया था ।  मुम्बई बंदरगाह में ये मशीनें 1996 तक पड़ी रहीं । 
                               उत्तर प्रदेश सरकार की लापरवाही से करोड़ो रूपये कीमत की ये मशीने मुम्बई बंदरगाह में ही रखी रह गई । कस्टम विभाग ने कस्टम चार्ज और जुर्माने की धनराशि सहित इन मशीनों को नीलाम करवा दिया । लंदन के क्लिंटन ब्रदर्स ने ही इन मशीनों को नीलामी में खरीद लिया था ।
                             सरकारों ने ग्लास फैक्ट्री चालू कराने की पहल नहीं की। इससे कुछ मशीनें जंग खाकर कबाड़ में बदल गई हैं और कई मशीनें नीलाम भी हो चुकी हैं। यदि विदेशी मशीनें आ गई होतीं और फैक्ट्री चालू हो गई होती तो हजारों युवकों को रोजगार मिल जाता।
        सन 2004 में मुलायम सिंह यादव की सरकार में आदित्य बिरला इस फैक्ट्री को नीलामी में खरीदना चाहते थे ,लेकिन कुछ बात नहीं बनी । 
        बाद में मायावती इस फैक्ट्री को 15% में बेंचना चाहती थी मगर आदित्य बिरला अब फैक्ट्री खरीदने के लिए राजी नही हुए । तब से आज तक बरगढ़ ग्लास फैक्ट्री इन पूर्ववर्ती यूपी सरकारों की नाकामी पर इन्हें कोश रही है । 
    2012 में बरगढ़ प्रधान प्रकाश चंद्र ने राष्ट्रीय संगोष्ठी में ग्लास फैक्ट्री की बात रखने का प्रयास किया था | ग्राम प्रधान ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सपनों को साकार करने के लिए बरगढ़ में ग्लास फैक्टरी के निर्माण के लिए अपनी बात को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी तक बरगढ़ ग्लास फैक्ट्री के बारे में अपनी बात की थी , लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मौन ही रहे |
बरगढ़ ग्लास फैक्ट्री से आत्मनिर्भर बन सकता बुंदेलखंड
      उद्योग विहीन बुंदेलखंड में चित्रकूट की बरगढ़ ग्लास फैक्ट्री  यदि सरकार थोड़ा प्रयास कर चालू करा दे तो क्षेत्र के बेरोजगारों को लाभ मिल सकता है। ग्लास फैक्ट्री क्षेत्र की बेरोजगारी दूर करने में मिल का पत्थर साबित हो सकती है।  इस पिछड़े क्षेत्र में विकास के द्वार खुल जाएंगे।
          इस ग्लास फैक्ट्री के बन जाने से बुन्देलखण्ड के हजारो युवाओं को रोजगार मिलता लेकिन ऐसा हुआ ही नही । 1988 के बाद कई लोकसभा और विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं, सरकार बदली लेकिन बुदेलखंड की इस फैक्ट्री के लिए कुछ न बदला | प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर पिछले 6 वर्षो से  बुदेलखंडवासी बड़ी उम्मीद से देख रहे है |
                      जिस दौर में बिजली , सड़क ,इन्टरनेट, जैसी सुविधाये देश के लाखो गावों – कस्बो में पहुच चुकी है | उस दौर में बुदेलखंड आज भी गरीबी, बेकारी, असमानता,   और पलायन जैसी समस्याओ से लड़ रहा है|



लेखक - इंजी. प्रवीण पाण्डेय
संस्थापक /अध्यक्ष
बुदेलखंड राष्ट्र समिति