70 साल की आजादी के बाद भी हमें एक होने से महरूम कर रखा

 



(डॉ यच बी सिंह)


पूर्व प्राचार्य, साकेत महाविद्यालय (अयोध्या)


 आज पूरे देश में कुछ ऐसे मुद्दे  जिन्हें में सामाजिक उद्भव एवं विकास के सापेक्ष प्रस्तुत होने वाले विषय वस्तु के रूप में देखने का प्रयास कर रहा हूं ।समझने की भी कोशिश करता हूं। लिखना कुछ नहीं चाहता। क्योंकि लिखने से पहले खद स्पष्ट हो जाना आवश्यक होता है। उदाहरण के लिए भारतीय सामाजिक व्यवस्था जिसका मौलिक स्वरूप और जो 1947 से लेकर अब तक हर क्षेत्र में तमाम ऊंचाइयों को प्राप्त कर लिया तकनीक स्पेस मेड इन इंडिया मेक इन इंडिया बौद्धिकता रचना धर्मिता आ the आधी फिर भी उसकी ज्वलंत समस्या गुलामी बनाम आजादी गरीबी बनाम अमीरी कहने का तात्पर्य रोटी कपड़ा और मकान जिसके सापेक्ष वैश्विक धरातल पर थ्री पी अर्थात पॉपुलेशन पोलूशन एंड पॉवर्टी न्यू समस्या सदियों से न केवल इस देश के सामने बल्कि उन तमाम देशों के सामने जीने हम विकासशील देश के रूप में जानते हैं। जिनकी संख्या अनगिनत है यद्यपि अपना देश विकासशील देशों में नंबर एक पर माना जा रहा है। जिसकी ज्वलंत समस्याएं जिस तरफ जहां तक मुझे याद है ।1975 में श्री संजय गांधी ने ध्यान आकृष्ट किया था ।समाज का कार्यक्रम का भी आयोजन हुआ था ।अच्छा बुरा उसकी क्या परिणीत रही आप सभी परिचित हैं ।सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी ने इसकी पहल अपने तरह से फिर से करने का प्रयास किया है। मैं उसकी सराहना करता हूं और इसे स्वाभाविक और सार्वभौमिक बनाया जा सके। जो आज की देश के उत्थान विकास के लिए सबसे जरूरी है। बढ़ती जनसंख्या का नियंत्रण मुझे याद है ।स्वर्गीय राष्ट्रपति कलाम साहब ने अपनी पुस्तक में लिखा था ।2020 की जनसंख्या की स्थिति के बारे में मैं समझता हूं ।जिस जनगणना और जनगणना के सापेक्ष नियत और नीति को लेकर सामाजिक अंतर्विरोध स्पॉन्सर्ड अथवा  स्वयमेव आज हमारे आपके सामने हैं। या तो हम इसको उस रूप में जनमानस के समक्ष प्रस्तुत नहीं कर पा रहे हैं। जिसका कारण शायद हमारा भावनात्मक अथवा कूटनीतिक सत्ता सापेक्ष कार्यशैली है। या नकारात्मकता बनाम सकारात्मकता कि आज की भारतीय राजनीति का असली स्वरूप है और सकता है ।देश का नौजवान प्रबुद्ध जन बुजुर्ग जिनको कल आबाद करना है। कल मजबूत करना है ।कल के लिए मार्गदर्शन करना है ।कल के लिए जीवन और सामाजिक संदर्भ को प्रति रोपित करने का आयाम निर्धारित करना है ।उन्हें आप आगे आना चाहिए जो व्यक्ति से लेकर समूह समाज और पूरे देश में होना चाहिए संसद या विधानसभा में बहुमत का मतलब संपूर्ण नहीं कानून बना लेने से ही किसी सामाजिक संदर्भ का सकारात्मक मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। क्योंकि हम आप सब जानते हैं कि चाहे संसद होते हैं विधानसभा हो वहां सर्व सम्मत अथवा बहुमत का प्रतिनिधित्व नहीं होता है बल्कि होता है ।अधिक मत अधिक संख्या जो हमारे संविधान के प्रावधानों के अंतर्गत उचित माना गया है और इसी स्थिति में कभी-कभी ऐसा लगता है कि हम प्राप्त अधिकारों के अंतर्गत सामाजिक सरोकार राष्ट्रीय भलाई ओबीसी आंतर करते हुए हम कहें वही सच्चा ऐसी युक्ति का प्रवेश करा देते मेरा अपना विचार है। संविधान के अंतर्गत प्रदत्त अधिकार के तहत कानून कानून होता है ।उसका पालन हर नागरिक का कर्तव्य होता है ।होना भी चाहिए लेकिन लोकतंत्र में विपक्ष या विपक्ष का तर्क उसको भी चाहे उसकी संख्या कम हो या ज्यादा नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और हमारे देश की विवेकानंद शैली संबोधन आपसी विचार विमर्श चीन की सीमा पार्लियामेंट या विधानसभा तभी ना रख कर आम जनमानस के बीच में भी ऐसे सामाजिक भावनात्मक मुद्दे लाए जाने चाहिए और उस आधार पर इन मुद्दों को ईश्वर विवाद की संभावनाएं कहानी शुरू करने के पहले पैराग्राफ निर्माण के पहले से ही मन में हो और होता है यह प्रकृति का नियम है मानव स्वभाव है हमें जरूर कर लेना चाहिए कुछ ऐसे मुद्दे यदा-कदा सुनने देखने को मिलते हैं जिससे मौजूद इसके कि देश की स्थिति राजनीतिक कूटनीतिक सामरिक तमाम संदर्भों में अपनी नई पहचान बनाने की दिशा में अग्रसर है। उसमें कहीं कहीं विराम अथवा अवरोध होते देखता अफसोस होता है ।सवाल एक मन में उठता है की आखिरी इसको कौन करेगा और इसी की प्रतीक्षा में हमारे जैसे तमाम बुजुर्ग 1947 की आजादी के बाद उस कहानी पर जैसे यही  आस  अट क्यों के रहो अली गुलाब के मूल हुई है। फिर बसंत ऋतु दारुण लगी है। फूल क्या यह संभव हो सकेगा ।खासतौर से आज की युवा पीढ़ी जिसमें भारत की अमूल्य धरोहर सन्निहित है मौजूद है कहां गया है जिस ओर जवानी चलती है। उस ओर जमाना चलता है। युवा पीढ़ी के सामने कल का भविष्य इस देश का ही नहीं इस देश के समाज का उनके हाथों में है। उन्हें अगुवाई करनी चाहिए और मेरा अपना अभिमत है कि सामाजिक सामंजस्य के प्रभाव सील वैचारिक सद्भाव और सम्मेलन के प्रभाव के अंतर्गत रोटी कपड़ा मकान की खोज की पूर्ति के लिए हमें 3p पॉपुलेशन पोलूशन और पावर्ड जी की परिभाषा को अंत्योदय विकास के सोच के अंतर्गत लागू करने के लिए संसद और विधानसभा को मजबूर करना चाहिए यही प्रार्थना है सभी से मैं किसी से विरोध नहीं करता हूं। अकेले मन से ईश्वर से यही प्रार्थना जागो नौजवान कुरीतियों को उन बुराइयों को जिन्होंने देश के 70 साल की आजादी के बाद भी हमें एक होने से महरूम कर रखा है। उसकी समाप्ति करें ईश्वर आपकी मदद करें आपकी उड़ जा उड़ जा को संबल प्रदान करें।