श्रीमद् रामचरितमानस का भी अवतरण दिवस है राम नवमी तिथि
श्रीमद् रामचरितमानस का भी अवतरण दिवस है राम नवमी तिथि

 

अयोध्या।भगवान श्रीराम के अवतरण दिवस के साथ साथ विश्व के करोड़ों जनमानस के हृदय में रामनाम का दीप प्रज्ज्वलित करनेवाले श्रीमद् रामचरितमानस का भी आज अवतरण दिवस है.गोस्वामी तुलसीदास जी ने इसका उल्लेख किया

 'संवत् सोलह सौ इकतीसा

 करउं कथा हरिपदधरि सीसा

 नौमी भौमवार मधुमासा

 अवधपुरीं यह चरित प्रकासा'

  गोस्वामी तुलसीदास जी को हनुमानजी के दर्शन के बाद उन्ही की कृपा से बाद में चित्रकूट में उन्हे भगवान श्रीराम के दर्शन हुए फिर उन्होने रामचरितमानस की रचना का शुभारंभ अयोध्या में किया और समापन भगवान विश्वनाथ की नगरी वाराणसी में किया.जो अलौकिक रचना उन्होने की उससे लगता है कि त्रेता युग का पूरा रामचरित्र उनकी आंखों के सामने पुनः प्रस्तुत किया गया जिसका प्रमाण स्वयं उन्होने अपनी रचना के माध्यम से दिया.

उत्तरकांड में कागभुशुण्डि जी गरुड़ से जब यह कहते हैं कि 'कहेउं न करि कुछ जुगुति विसेखी

 यह सब मैं निज नयननि देखी'

 फिर ऐसी स्थिति में देखने वाले तुलसीदास ही हुए क्योंकि मानस के पात्रों कीओर से व्यक्त की गयी भावनाओं के प्रस्तोता तो वे स्वयं हैं.रामराज्याभिषेक के अवसर पर वेदों की  ओर से 

सिंहासनारूढ़ सीताराम की जोड़ी की वंदना में जो स्तुति प्रस्तुत की गयी वह इस तथ्य की पुष्टि करती है.पढ़िये स्तुति  की उस शब्दावली को

'नभदुंदभीबाजहिं विपुल

गंधर्व किन्नर गावहीं

नाचहिं अपछरा वृंद परमानंद

सुनि सुर पावहीं

भरतादि अनुजविभीषनांगद

अंग अंगन्हि प्रति सजे

गहे छत्र चामर व्यजनधनु

असिचर्मशक्ति विराजते'

 गोस्वामी जी ने वर्णन में भूतकाल की बात नहीं की.'गावहीं' 'पावहीं' कहकर वे संकेत देते हैं कि वे अपने सामने देख रहे हैं. इसे और अधिक स्पष्ट किया जब उन्होने सीता जी का वर्णन किया.पढ़िये

 'श्री सहित दिनकरवंसभूषण

कामबहु छवि सोहई

नव अंबुधरवरगात अंबर देखि

मुनिमन मोहई

मुकटांगदादि विचित्रभूषण

अंगअंगन्हि प्रति सजे

अम्भोजनयनविसाल उरभुज

धन्य नर निरखन्ति जे'

गोस्वामी जी लिखते हैं कि आकाश में दुंदभी बज रही है गंधर्व व किन्नर गा रहे हैं अप्सराएं नृत्य कर रही हैं जिसे देख देवता आनंदित हो रहे हैं.सूर्यवंशशिरोमणि राम की बगल में बैठी सीता ऐसी सुशोभित हो रही हैं मानो वर्षा काल के नये जल के बादलों से भरा आकाश हो।कमल के समान उनकी लाल आंखें जो देख रहे हैं वे धन्य हैं.उन्होने लिखा 'धन्य नर निरखन्ति जे'।

 यह दृश्य देखकर तुलसीदास जी थोड़े समय के लिये मूर्च्छित हो गये.उन्होने लिखा

 'वह सोभा समाज सुख

 कहत न बनइ खगेस

 बरनहिं सारद सेष श्रुति

 सो रस जान महेस'

गरुड़ ने कागभुशुण्डि से पूछा 'क्यों क्या हुआ?'उन्होनें उत्तर दिया 'शंकर जी ध्यान में चले गये'-'मगन ध्यान रस'.यह मुद्रा मानस के रचनाकार तुलसी की ही तो थी.

 तुलसी ने मानस को सांसारिकव्याधिग्रस्त लोगों की मानसिक पीड़ा को शांत करनेवाली औषधि के रूप में प्रस्तुत किया.उन्होने अंत में लिखा

'श्रीमद् रामचरितमानसमिदं भक्त्यावगाहन्ति ये

 ते संसार पतंगघोरकिरणैर्दह्यन्ति

नो मानवाः'

जो इस रामचरितमानस का भक्तिपूर्वक अवगाहन करेंगे सांसारिकता की प्रचण्ड किरणें उन्हे नहीँ जला पायेंगी।

 राम और उनकी रामकथा जनजन की पीड़ा का शमन करे।