कोरोना - जमात की भूल ने पूरे मुल्क को ही जंजाल में डाला

कोरोना - जमात की भूल ने पूरे मुल्क को ही जंजाल में डाला



- गंगा-जमुनी तहजीब पर संकट के बादल
कोरोना वायरस : मुसलमानों की स्थिति


 ( रवि आनंद वरिष्ठ पत्रकार)


रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाये. टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गांठ पर जाए.
रहीम कहते हैं कि प्रेम का नाता नाजुक होता है। आज उनका दोहा चरितार्थ होने जा रहा है, जब दुनियाभर में कोरोना का शिकार लोगों की संख्या 15 लाख से अधिक हो चुकी है और लगभग एक लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। अबतक इस वायरस की न कोई दवा बनी है और न कोई वैक्सीन आया है। दिसंबर-2019 में चीन के वुहान से कोरोना की शुरुआत के बाद से सिर्फ लॉकडाउन ही समस्या का निदान मिला है, पर इसके लिए भी कुछ लोग तैयार नहीं हैं। विश्व के लगभग हर विकसित और विकासशील राष्ट्र अभी लॉकडाउन के कारण घरों में कैद हैं। 
वहीं एक और परेशानी कोरोना वायरस से बड़ी समस्या बननेवाली है। कोरोना का इलाज तो हो जाएगा पर जो समस्या उसके बाद होगी उससे निपटने के लिए क्या हम तैयार है?


मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा।
अल्लामा इकबाल की रचना से भारत में किसको इनकार होगा, लेकिन कोरोना ने मानो गंगा जमुनी तहजीब की भी तिलांजलि दे दी है। वर्ना आए दिन यह खबर नहीं आती कि धर्म विशेष के लोग सरकार के आदेश का उल्लंघन कर रहे। सरकारी अस्पताल के डॉक्टर नर्स पर थूक, मल-मूत्र से संक्रमण फैलने का प्रयास कर रहे हैं। अब यह खबर भी तेजी से फैल रही है कि धर्म विशेष ने कोरोना से मानवता के बचाव की लड़ाई को कमजोर कर दिया है। अगर भारत की बात की जाए, तो रोगी में लगभग 40 से 45 प्रतिशत लोग एक खास जमात से ताल्लुक रखते हैं। बताया जाता है कि यह जमात उन्हें धर्म की शिक्षा देती है।
अगर जमात धर्म की शिक्षा देती है, तो फिर लोगों के जीवन स्तर को उठाने में उसे मददगार होती न कि अपने अनुयायी की जीवनलीला ही समाप्त करने का प्रयास करती। मार्च को हुए धर्म सभा में आए दुनिया भर से मुसलमान ने मरकज में अपनी तकरीर दी होगी, इससे किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। इसके बाद वे देश की विभिन्न मस्जिद में भी अपने विचार पहुंचाने पहुंचे। दुनियाभर से आए तब्लीगी जमात का केंद्र भारत की राजधानी दिल्ली में था। भारत का दुनिया में अपना रसूक है, परंतु वर्तमान में जमात के कृत्य से यूरोप की नजर से चीन को बचाने का प्रयास हो सकता है।
क्या जमात के लोगों को यह समझ नहीं आ रहा कि उनके कारण कई मुस्लिम देश भी आज गंभीर संकट से गुजर रहे हैं। चाहे पाकिस्तान, इंडोनेशिया, मलेसिया, ईरानी, सूडान जैसे देशों को भी जमातियों ने कोरोना संक्रमित बना दिया है।


भारत में जहां कोस-कोस पे बदले पानी, तीन कोस पे वाणी वहां पर विदेशी लोगों ने किस भाषा में अपनी बात जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया और यहां के लोग उनकी बात कैसे समझे होंगे? क्योंकि जिन्हें अपनी सरकार की बात समझने के लिए किसी उलेमा से सुझाव लेना पड़ता हो, वे लोग विदेशियों से विदेशी भाषा में कैसा ज्ञान प्राप्त किए होंगे, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। पर एक बात तो तय है, जब हम कोरोना से लड़ाई जीत लेंगे, तब भारतीय जनमानस में मुसलमान वायस अगर घुस गया, तो क्या अब मुसलमानों को उचित सम्मान मिल पाएगा। या जमात के कारण पूरी कौम ही उपहास का केंद्र बन जाएगी और धर्मनिरपेक्षता की मुख्यधारा से अलग-थलग हो जाएगी? देश में धर्मनिरपेक्षता का ढ़ोग फैलाया जाता था, आज जमात की कार्यप्रणाली देखकर क्या कोई धर्मनिरपेक्ष रह पाएगा?
बड़े जनमानस में जमात के कृत्यों से जो संदेश गया, वह आमलोगों को हतोत्साहित ही करेगा। मुसलमान में भी कुछ वर्ग ऐसे हैं, जिन्होंने जमात के कृत्य को सही नहीं ठहराया है। जमात के लोगों द्वारा डॉक्टर, नर्स व पुलिस के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार को कोई सही नहीं ठहरा सकता है, पर इसका कड़ा विरोध भी कही नहीं दिखा।
देश के विभिन्न क्षेत्रों से होनेवाली अशोभनीय घटना पर मौन होना भी भविष्य के लिए गंभीर खतरा हो सकता है। जमात के उपद्रव का परिणाम पूरी कौम को उठाना पड़ सकता है, जब लोग जमात के साथ कौम की ही उपेक्षा करने लगेंगे। क्या इन लोगों को इल्म है कि इनके कृत्य से मुस्लिम समुदाय को ही खतरा पैदा हो रहा है। क्या जमातियों के कृत्यों को मौन समर्थन दे रहे लोगों का सामाजिक बहिष्कार हो सकता है? ऐसे और भी सवाल हैं, जो अब जनमानस के दिलो-दिमाग में चल रहे हैं। क्या इनका तिरस्कार सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन के उत्थान के लिए सही होगा? ऐसे और भी सवाल हैं, जिनका जवाब आने वाले समय में मिलेगा।
भारत में सनातन संस्कृति में कहा गया है, धर्मों रक्षति रक्षित: में कितनी बातें कह दी गई हैं, इसे कोई स्वस्थ मस्तिष्क वाला व्यक्ति ही समझ सकता है। धर्म, जिसे लोग समुचित जानकारी के अभाव में अपनी-अपनी परिभाषाएं देकर समझने-समझाने का प्रयास-दुष्प्रयास करते हैं, वास्तव में अत्यंत व्यापक और विशाल अर्थ को अपने आप में समेटे हुए है।