कविता संग्रह में नवल जयदीप की रचना

कवि परिचय- 


जयदीप पांडेय "नवल जयदीप"
पिता - जनार्दन पांडेय
ग्राम -बछईपुर ,पोस्ट- बाघानाला
 जनपद बस्ती, उत्तर प्रदेश।
संपर्क सूत्र- 9450891686


ग़ज़ल - 1.
कृष्ण प्रण तज शस्त्रधारी हो गए
गुरु अंगूठे के शिकारी हो गए
द्रौपदी किस पर भरोसा अब करे
जब युधिष्ठिर ही जुआरी हो गए
साधु बनकर एक ने लूटा उसे
औ कलंकित सब पुजारी हो गए
जो नवाबी शौक़ रखते थे कभी
वो मुहब्बत में भिखारी हो गए


ग़ज़ल - 2.
करके सब कुछ हवाले गए
तथ्य फिर भी खँगाले गए
कैसे कैसे सितमगर मिले
होंठ तक आके प्याले गए
जिनकी आंखे बुलाती रही
उनके दिल से निकाले गए
अब सहारा हमीं रह गए
सब के सब दिल्ली वाले गए
इस क़दर उनकी रहमत हुई 
बढ़ते हाथों के छाले गए


ग़ज़ल - 3.
तुम्हारे हमसफ़र जितने हैं दो दो सात करते हैं
विदूषक मंच के साहित्य पर आघात करते हैं
कमीं तुम क्या निकालोगे हमारी शायरी में जब
 हमारे घर के बच्चे तक बहर में बात करते हैं
कभी किरदार पर उँगली कोई कैसे उठाएगा
अँधेरे में नहीं,हम दोपहर में बात करते हैं
ख़ुदा हो क्या को अब हम गुफ्तगू छुपकर करें तुमसे
हमारा प्यार सच्चा है शहर में बात करते हैं


शेर - 
हमारे पास द्रोणाचार्य हमको भय नहीं किंचित
कोई चिड़िया हो या मछली निशाना साध लेते हैं
तुम्हें गर छीक आ जाए तो सीधे एम्स जाते हो
हम अपने जख्म पर कपड़ा पुराना बांध लेतें हैं


हम तकल्लुफ में आदाब कर लिए
वो तो ख़ुद को शहंशा समझने लगे
रब मेहरबान जयदीप हो क्या गया
रंग गिरगिट के माफिक बदलने लगे


दोहा -
जिसको हम देते रहे रोज़ रोज़ ही रोज़
वो गैरों के साथ में खाती है मोमोज


बच्चों सी बातें करें लगते हैं मासूम
मन करता जयदीप बस लें होंठो को चूम