आद्य शंकराचार्य ने सब में एकता की भावना संचार किया :अविमुक्तेश्वरानंद

 




आद्य  शंकराचार्य ने सब में एकता की भावना संचार किया :अविमुक्तेश्वरानंद


 


 


-जयंती पर विग्रह पूजन, विरचित तत्वबोध का पाठ, शंकर भाष्य परायण


(पावन भारत टाइम संवाद)


वाराणसी। बैसाख मास के शुक्‍ल पक्ष की पंचमी तिथि मंगलवार को अद्वैत वेदांत के प्रणेता आद्य शंकराचार्य की जयंती काशी में मनाई गई। सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के माँ वाग्देवी मंदिर परिसर में स्थापित आद्य शंकराचार्य की मूर्ति की विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल की अगुवाई में आचार्यो ने सामाजिक दूरी का ध्यान रख विधि विधान से पूजा अर्चना की।




इसी क्रम में केदारघाट स्थित श्री विद्यामठ में भी आदि शंकराचार्य की जयंती मनाई गईं। मठ में आदि शंकराचार्य के विग्रह का पूजन किया गया। भगवान् विष्णु के सहस्रनाम पर भगवत्पाद आद्य शंकराचार्य जी के भाष्य का व्याख्यान स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने किया।


उन्होंने कहा कि आज का जो भारत है वह भगवत्पाद आदि शंकराचार्य की देन है। उन्होंने देश की चार दिशाओं में चार आम्नाय पीठों की स्थापना की। चार धामों की स्थापना करके देश की सीमाओं को सुरक्षित किया। उन्होंने कहा कि आदि शंकराचार्य ने अपने समय में प्रचलित 72 अवैदिक मतों का खण्डन कर अद्वैत मत की स्थापना की और भावनात्मक रूप से एकात्मवाद को स्थापित करके सबमें एकता की भावना का संचार किया।


कोरोना महामारी के संदर्भ में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि आदि शंकराचार्य ने अपने जीवन और शिक्षा में आचरण की पवित्रता पर विशेष बल दिया। मन के साथ-साथ शरीर की शुद्धता की भी शिक्षा दी। यदि उनकी शिक्षाओं का लोग पालन करें तो यह महामारी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकेगी। आज लोग विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा बताए पद्धति से हाथ धोने की क्रिया सीख रहे। जबकि हमारे ग्रन्थों में केवल हाथ धोने की ही नहीं अपितु शौक स्नान शयन जागरण आदि जीवन के प्रत्येक क्रियाकलापों को कैसे किया जाना चाहिए, इसका भी स्पष्ट उल्लेख मिलता है। इस दौरान मुकुन्दानन्द ब्रह्मचारी, स्वामी नित्यानन्द पुरी, आचार्य अरुणेश झा, पं कण्ठीराम भी मौजूद रहे।


भाष्य परायण करने के बाद सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल ने कहा कि अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों की प्रतिष्ठा कर जहाँ आद्य गुरू ने प्रपंच की असारता का प्रतिपादन किया। वहीं, दूसरी ओर अपनी स्तुति-रचनाओं से भक्ति सिद्धांत को भी प्रतिष्ठापित किया। गुरु के आश्रम में इन्हें 08 साल की उम्र में वेदों का ज्ञान हो गया। फिर भगवान शंकराचार्य भारत यात्रा पर निकले और चारों पीठों की स्थापना किया।


कुलपति ने बताया कि वेदांत विभाग के आचार्य प्रो. सुधाकर मिश्र ने आद्य शंकराचार्य की जयंती पर संकल्प लेकर विश्व कल्याण एवं कोरोना महामारी को दूर करने के लिये वर्ष व्यापी शंकर भाष्य परायण शुरू किया है। जिसमें ब्रह्मसूत्र,श्री मदभगवदगीता एवं उपनिषदों के मूल का परायण किया जा रहा है। जगन्नाथ पूरी संस्कृत विश्वविद्यालय,पूरी,उड़ीसा के पूर्व कुलपति एवं पुराण विभाग के वरिष्ठ आचार्य प्रो. गंगाधर पण्डा ने कहा कि जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है। तब-तब धर्म की स्थापना के लिये भगवान अवतरित होते है।


प्रति कुलपति प्रो. हेतराम कछवाहा ने कहा की भगवान शंकराचार्य ने धर्मरज्य्की स्थापना के लिये व्यासपीठ एवं राजपीठ के सद्भावपूर्ण संवाद के माध्यम से सामंजस्य बनाये रखने की प्रेरणा प्रदान की।