कश्मीरी पंडितों के विस्थापन के लिए कांग्रेस जिम्मेदार
— बृजनन्दन राजू
कश्यप ऋषि द्वारा बसाया गया जम्मू कश्मीर जहां सम्राट अशोक से लेकर महाराज हरिसिंह जैसे हिन्दू राजाओं का राज था। जिसे कनिष्क, चक्रवर्ती सम्राट ललितादित्य और महाराजा रणजीत सिंह जैसे प्रतापी हिन्दू राजाओं ने सजाया संवारा था। धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला अनुपम प्राकृतिक छटा और सुरम्य घाटियों से युक्त काश्मीर जो संस्कृत विद्या का प्रमुख केन्द्र था। जहां पराधीनताकाल में भी मुगलकाल से लेकर अंग्रेजों के शासन के समय भी हिन्दू राजाओं का ही शासन रहा। देश को आजादी मिलते ही उस जम्मू काश्मीर को मुस्लिम नेताओं के हवाले करना इतिहास की भयंकर भूल थी। जम्मू काश्मीर के हालात के लिए चाहे अनुच्छेद 370 हो, 35 ए हो, आतंकवाद हो या कश्मीरी पंडितों का पलायन हो इसके लिए कांग्रेस जिम्मेदार है। जो काश्मीर हमारे लिए देश में पर्यटन के लिए सबसे अच्छी जगह हो सकती थी वहां पर सुरक्षा के नाम पर अकूत धन खर्च करना पड़ रहा है। यह सब हमारे नेताओं की गल्तियों के कारण हुआ। इतिहास से सबक लिया जाता है इसलिए जो पूर्व में गलतियां हुई उस समय के नेताओं को कोसने से काम नहीं चलेगा। उसके निराकरण के उपाय करने होंगे लेकिन कुछ बिन्दुओं पर ध्यान करना समीचीन होगा। आज देश में सीएए और एनआरसी के नाम पर लोगों को गुमराह किया जा रहा है। अपने को बुद्धिजीवी कहने वाले लोग गांधी की दुहाई देकर सीएए को गलत साबित करने का प्रयास कर रहे हैं। जिसका यहां रह रहे नागरिकों से कोई लेना देना नहीं है उस कानून सीएए के विरोध में मार्च और सभा की जा रही है और पाक में रह रहे मुस्लिमों को नागरिकता देने की वकालत कर रहे हैं। सीएए को धार्मिक आधार पर बनाया गया कानून बता रहे हैं उन लोगों ने कश्मीर के विस्थापित पंडितों की आवाज कभी नहीं उठाई। जब धर्म के आधार पर उनका सामूहिक नरसंहार किया गया, मां बहनों की इज्जत लूटी गयी, उनकी घर संपत्ति पर कब्जा किया गया। क्या 19 जनवरी 1990 की रात की काली यादें देश भूल गया। जिस रात में मस्जिदों से लाउडस्पीकर द्वारा ऐलान किया गया कि कश्मीरी पंडित इस्लाम कबूल करें या कश्मीर छोड़कर चले जाएं या फिर मरने के लिए तैयार हो जाएं। वर्षों से रह रहे कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ना पड़ेगा ऐसा सपने में भी सोचा नहीं था। उन्हें रातोंरात भागने को मजबूर किया गया। करीब सात लाख हिन्दुओं को घर छोड़ने पड़े। विद्यालयों को जलाया गया, हिन्दुओं की दुकानें लूटी गयीं और हिन्दू घरों को आग के हवाले किया गया। कश्मीर घाटी हिन्दू विहीन हो गयी। कश्मीरी पंडित आज भी दर —दर की ठोकरें खा रहे है लेकिन इनके पुनर्वास के लिए किसी ने विरोध प्रदर्शन नहीं किया। किसी ने अनशन नहीं किया,पुरस्कार वापसी गैंग सामने नहीं आयी। अहिंसा का उपदेश देने वाले गांधीवादी कश्मीरी पंडितों के आंशू पोछने नहीं आए।
उस समय केन्द्र सरकार की ढ़ुलमुल नीति के कारण सेना से जो सुरक्षा कश्मीरी पंडितों को मिलनी चाहिए वह नहीं मिली। सेना से भी जिस सफलता की आशा थी वह पूरी नहीं हुई सरकार ने भी उनका साथ नहीं दिया। आजादी के बाद सबसे बड़ा पलायन था। इतनी बड़ी मात्रा में पलायन व सामूहिक नरसंहार की घटनाएं कम ही मिलेंगी। कश्मीर में हिन्दुओं के साथ जो घटा उस प्रकार मानवता को तार—तार कर देने वाली घटनाएं मुगलों और अंग्रेजों के कालखण्ड में भी नहीं घटित हुई। पर इन कश्मीरी पंडितों के लिए मानवाधिकार की बात कभी नहीं उठी। इसी तरह अयोध्या में 06 दिसम्बर 1992 को बाबरी विध्वंस की प्रतिक्रिया के स्वरूप 1993 में बांग्लादेश में घटना घटी जब योजनाबद्ध ढंग से हिन्दुओं की हत्याएं की गयीं। 245 बड़े मंदिरों सहित 4600 से अधिक मंदिर तोड़े और लूटे गये। 50 हजार घरों को आग लगायी गयी तथा 10 हजार व्यापारिक प्रतिष्ठानों को लूटा गया। भोला जैसे कुछ जिलों में शायद ही कोई हिन्दू महिला बची हो जिसका शीलहरण न किया गया हो। हिन्दुओं को यह धमकी दी गयी कि या तो वे इस्लाम कबूल कर लें या भारत चले जायें अन्यथा अगली बार उन्हें जीवित नहीं छोड़ा जायेगा।
काश्मीर में 1990 से शुरू हुआ आतंक का दौर समाप्त नहीं हुआ 2014 से कम जरूर हुआ। याद करें 25 जनवरी 1998 का वह मंजर जब आतंकियों ने कश्मीर के गांदरबल के वंधामा गांव में 04 बच्चे 09 महिलाओं समेत 23 हिन्दुओं को एक साथ खड़ा कर गोलियों से छलनी कर मौत के घाट उतार दिया गया। इसी प्रकार की एक घटना 23 मार्च 2003 को घटित हुई जब लश्कर ए तैय्यबा के आतंकियों ने पुलवामा जिले के नाड़ीमर्म गांव में 11 महिलाओं और दो बच्चों समेत 24 हिन्दुओं को इकट्ठा कर गोलियों से भून दिया गया।
ऐसे में कश्मीरी पंडितों की घर वापसी की आशाएं धूमिल हो चुकी थीं। बीच की सरकारों ने उन पर ध्यान भी नहीं दिया। विस्थापितों को दर—दर की ठोकरें खानी पड़ी। इसके बाद जम्मू कश्मीर की समस्या जो नासूर बन चुकी थी उसको एक झटके में दूर करने का काम मोदी सरकार ने किया है। इससे कश्मीरी पंडितों में घर वापसी की आस जगी है। अब विस्थापित बंधुओं के अंदर विश्वास जगाकर उन्हें सुरक्षा व सम्मानपूर्वक बसाने की जिम्मेदारी सरकार की है। इस दिशा में केन्द्र सरकार सकारात्मक कदम भी बढ़ा रही है।
केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को लेकर जो दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई है उससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि अब शायद ही कश्मीरी विस्थापितों को अगले साल इस निर्मम त्रसदी की बरसी मनाना पड़े। आज पूरा देश यह उम्मीद कर रहा हैं कि अगले एक साल के भीतर घाटी के हालात सामान्य होंगे और कश्मीरी अपने घर रहने के लिए जायेंगे। वैसे इस दिशा मे अभी बहुत कुछ करना बाकी है क्योंकि आज भी घाटी में अमन चैन लाना बड़ी चुनौती है। हिन्दुओं के लिए आज भी घाटी सुरक्षित नहीं है।
हालांकि केंद्र सरकार ने पिछले कुछ वर्षो में कश्मीरी पंडितों की कश्मीर वापसी के लिए कई कॉलोनियां बनाने के साथ उनके लिए रोजगार पैकेज का भी एलान किया, इसके बावजूद साल 2015 तक सिर्फ एक ही परिवार कश्मीर वापसी पैकेज के तहत श्रीनगर लौटा था। प्रधानमंत्री पैकेज के तहत रोजगार पाने वाले भी ट्रांजिट कॉलोनियों में ही सिमट कर रह गए हैं। अनुच्छेद 370 और 35 ए हटने के बाद विस्थापित कश्मीरी पंडितों में एक नई किरण जगी है। अगर अब कुछ नहीं हुआ तो कभी नहीं होगा।
केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद जम्मू-कश्मीर में सूचना का अधिकार कानून, बाल शोषण रोकथाम कानून, भ्रष्टाचार रोकथाम कानून समेत सारे केंद्रीय कानून लागू हो रहे हैं। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद वहां के हालात बदले हैं, लेकिन अभी और भी बदलाव लाने और साथ ही एक ऐसा माहौल कायम करने की जरूरत है जिससे कश्मीरी पंडित घाटी में अपने को सुरक्षित महसूस कर सकें। कश्मीरी पंडित 30 सालों से अपने घरों को वापस लौटने की बाट जोह रहे हैं। उनका सपना साकार हो रहा है। कश्मीरी पंडितों का कश्मीर से बाहर निर्वासित जीवन जीना देश के लिए कलंक है। इस बात को कश्मीर के साथ शेष देश के लोगों को भी समझना होगा कि आजाद भारत में भी इतनी मात्रा में कश्मीरी पंडित निर्वासित जीवन जी रहे हैं। बीते 30 सालों में कश्मीरी पंडितों की वापसी के पक्ष में वैसी आवाज नहीं उठी जैसी उठनी चाहिए थी। उनके लिए इससे बड़ी त्रासदी और कोई नहीं हो सकती कि अचानक उन्हें कह दिया गया कि घर बार छोड़कर निकल जायो,इस्लाम कबूल करो या फिर मरने के लिए तैयार हो जाओ। केन्द्र सरकार का कश्मीरी पंडितों की वापसी का उसका संकल्प अभी शेष है। इस अधूरे संकल्प का संज्ञान उन केंद्रीय मंत्रियों को भी लेना चाहिए जो जम्मू-कश्मीर के लोगों को भरोसा दिलाने और वहां की समस्याओं को जानने-समझने एवं उनका निस्तारण करने में लगे हैं। अलगाव एवं आतंक के समर्थकों को यह बात अब समझ लेनी कि मोदी के सामने उनकी चलने वाली नहीं है और अब कश्मीर में उनकी दाल गलने वाली नहीं है।
- बृजनन्दन राजू
(लेखक प्रेरणा शोध संस्थान नोएडा से जुड़े हैं।)